कार्य (Work)-
सामान्यतः कार्य का अर्थ किसी क्रिया के संपादन से होता है| जब कोई व्यक्ति खेत में हल चलता है, चक्की से आता पीसता है, लकड़ी चीरता है या पढ़ता है ,दौड़ता है तो यह कहा जाता है कि व्यक्ति कार्य कर रहा है, परन्तु भौतिकी में कार्य का विशेष अर्थ इस प्रकार है -
"बल लगाकर किसी वस्तु को बल कि दिशा में विस्थापित करने कि क्रिया को कार्य कहते हैं |"
अर्थात कार्य होने के लिए
१. बल तथा
२. बल कि दिशा में विस्थापन दोनों आवश्यक है |
यदि बल लगाने से वस्तु में विस्थापन न हो या विस्थापन तो परन्तु बल कि दिशा में न हो तो भौतिकी में यही कहा जाएगा कि कार्य नहीं हो रहा है |इसी प्रकार पृथ्वी पर स्थित सभी वस्तुओं पर गुरुत्व बल तो लगता है किन्तु विस्थापन न होने से कोई कार्य नहीं हो रहा है |
यदि किसी वस्तु को निश्चित दुरी d तक ले जाने में किया गया कार्य व हो तो किया गया कार्य वस्तु पर लगाये गए बल(F) एवं विस्थापन (d)के अनुक्रमानुपाती होता है
∴ कार्य (W)∝ बल(F)....................................................(1)
∴ कार्य (W)∝ विस्थापन (d) ............................................(2)
(1) और से (2)
W∝ F.d
W=k.F.d जहां k एक अनुक्रमानुपाती नियतांक है |जब F=1 तथा d=1 तो w=1 इस प्रकार k=1
इसलिए
W=F×d
कार्य =बल x बल की दिशा में विस्थापन
कार्य का मात्रक -
कार्य =बल x विस्थापन
∴ कार्य का मात्रक = बल का मात्रक x विस्थापन का मात्रक
S.I पद्धति में बल का मात्रक न्यूटन तथा विस्थापन का मात्रक मीटर है |
∴ कार्य का मात्रक = 1 न्यूटन x 1 मीटर = 1 न्यूटन मीटर
S.I पद्धति में कार्य के मात्रक न्यूटन मीटर को जुल (joule) कहते हैं |इसे J से प्रदर्शित करते हैं |अतः 1 जुल का कार्य उस समय होगा जब 1 न्यूटन का बल लगाकर वस्तु को बल कि दिशा में 1 मीटर विस्थापित किया जाता हैं |कार्य एक अदिश राशि है |
सामर्थ्य (Power )-
किसी व्यक्ति अथवा मशीन द्वारा प्रति एकांक समय में किये गए कार्य को उस करता या मशीन कि सामर्थ्य अथवा शक्ति कहते है | दुसरे शब्दों में
“कार्य किये जाने कि समय दर को सामर्थ्य या शक्ति कहते हैं ”
यदि कोई मशीन t समय में w कार्य करे, तो मशीन कि सामर्थ्य (P)=कार्य/समय =W/t
P =W/t
और मशीन द्वारा किया गया कार्य =सामर्थ्य x समय
W=P × t
सामर्थ्य (Power ) का मात्रक -
यदि कोई वस्तु 1 सेकंड में 1 जूल कार्य करती है , तो सामर्थ्य =1 जूल /1 सेकंड
=1 जूल/सेकंड
=1 वाट (watt)
अतः सामर्थ्य का मात्रक जूल/सेकंड अथवा वाट है | इसे W से प्रदर्शित करते हैं | वाट से बड़ा मात्रक किलोवाट तथा मेगावाट है |
1 किलोवाट =1000 वाट
1 मेगावाट =1000 किलोवाट
मशीनों कि सामर्थ्य को अश्व शक्ति ( हॉर्स पॉवर) में भी व्यक्त करते हैं |
1 अश्व शक्ति (Horse.Power)= 746 वाट (लगभग)
उर्जा (Energy)-
“किसी वस्तु के कार्य करने कि क्षमता को उस वस्तु की ऊर्जा कहते हैं|”
अर्थात यदि किसी वस्तु में ऊर्जा है, तो वह कार्य करने में सक्षम होगी जैसे कि एक गतिशील कार में ऊर्जा होती है क्योंकि वह रुकने से पूर्व कुछ कार्य कर सकती है | अतः यह कहा जा सकता है कि कार्य व ऊर्जा एक-दूसरे के समरूप हैं |चूँकि कार्य व ऊर्जा दूसरे के समरूप हैं, अतः कार्य कि तरह ऊर्जा भी एक एक-अदिश राशि है व S.I पद्धति में ऊर्जा का मात्रक जूल ही होगा |उर्जा के दो प्रकार होते हैं –
1. गतिज ऊर्जा (Kinetic Energy)
2. स्थितिज ऊर्जा (Potential Energy)
गतिज ऊर्जा – किसी वस्तु में उसकी गति के कारण कार्य करने कि जो क्षमता होती है उसे वस्तु की ऊर्जा गतिज ऊर्जा कहते हैं| जैसे : पैडल चलाना बंद करने भी साइकिल उस पर लगने वाले घर्षण बल के बिरुद्ध कुछ दुरी तय कर सकती है | इस क्रिया में साइकिल घर्षण बल के बिरुद्ध कार्य करती है | उसकी यह गतिज उर्जा उसके द्वारा किये गए इस करी के बराबर होगी |
माना m द्रब्यमान कि वस्तु विराम अवस्था में है | F बल के लगाने पर वस्तु में a त्वरण उत्पन्न हो जाता है जिसके कारण s दूरी चलने के बाद उसका वेग बढ़कर v हो जाता है |
अतः गतिज ऊर्जा = वस्तु पर किया गया कार्य
गतिज ऊर्जा = बल x विस्थापन = Fxs
गति के दूसरे नियम से , बल (F)= द्रव्यमान (m) x त्वरण(a)
इसलिए गतिज ऊर्जा = m × a × s-------------------------------------- (1 )
गति के तीसरे समीकरण से
v² = u² +2as
या, v² = (0)2 +2as
या, v² = 2as
as=v²/2 ------------------------------------------- (2 )
as का मान समीकरण 1 में रखने पर
गतिज ऊर्जा = m × v²/2
अतः गतिज ऊर्जा = m × v²/2 =1/2 mv²
गतिज ऊर्जा =1/2 mv²
2. स्थितिज ऊर्जा (Potential Energy)-
"किसी वस्तु में उसकी विशेष अवस्था अथवा स्थिति के कारण ,कार्य करने कि जो क्षमता होती है उसे वस्तु कि स्थितिज उर्जा कहते हैं |"
स्थितिज ऊर्जा (Potential Energy) के प्रकार -
- गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा
- प्रत्यास्थ स्थितिज ऊर्जा
- द्रव्यमान स्थितिज ऊर्जा
- विद्युतीय स्थितिज ऊर्जा
- चुम्बकीय स्थितिज ऊर्जा
- रासायनिक स्थितिज ऊर्जा
- नाभकीय स्थितिज ऊर्जा आदि |
1-गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा -माना कि m द्रव्यमान के पिण्ड को h उच्चाई तक उठाया जाता है|इसके लिए गुरुत्व-बल F=mg के विरुद्ध किया गया कार्य वस्तु में स्थितिज ऊर्जा के रूप में संचित हो जाता है जिसे उस वस्तु कि गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा कहते है|अतः पिण्ड कि गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा,
U=गुरुत्व-बल के विरुद्ध किया गया कार्य
U=पिण्ड का भार × ऊंचाई =m g h
2-प्रत्यास्थ स्थितिज ऊर्जा -प्रत्यास्थ बलों के कारण वस्तुओं में निहित ऊर्जा को प्रत्यास्थ स्थितिज ऊर्जा कहते है|
यदि स्प्रिंग को खीचने पर उसमे उतपन्न आतंरिक प्रत्यास्थ बल खिंचाव x हो तो स्प्रिंग कि प्रत्यास्थ स्थितिज ऊर्जा
U=1/2kx² जहाँ k एक अनुक्रमानुपाती नियतांक है |
3-द्रब्यमान स्थितिज ऊर्जा -महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइन्स्टीन के अनुसार "प्रत्येक पदार्थ में उसके द्रव्यमान के कारण ऊर्जा होती है जिसे द्रव्यमान ऊर्जा कहते है"
यदि m द्रव्यमान को ऊर्जा E में परिवर्तित किया जाय तो कुल ऊर्जा
E=mc²
जहाँ c=3×10⁸ निर्वात में प्रकाश का वेग है |
4-विद्युत स्थितिज ऊर्जा -वैदुत क्षेत्र में रखे किसी वस्तु पर लगने वाले वैदुत बलों के कारण वस्तुवे विस्थापित हो जाती है|इस ऊर्जा को वैदुत स्थितिज ऊर्जा कहते है |
5-चुम्बकीय स्थितिज ऊर्जा -चुम्बकीय क्षेत्र में स्थित किसी गतिशील आवेश या धरावाही चालक में चुम्बकीय बलों के कारण जो कार्य करने कि क्षमता ऊत्पन्न होती है उसे चुम्बकीय स्थितिज ऊर्जा कहते है |
6-रासायनिक स्थितिज ऊर्जा -पदार्थ में उसकी विशेषपरमाण्विक संरचना के कारण जो स्थितिज ऊर्जा ऊत्पन्न होती है उसे रासायनिक ऊर्जा कहते है
7-नाभकीय स्थितिज ऊर्जा -पदार्थ के नाभिक में स्थित मूल कणों (न्यूट्रान तथा प्रोटान)के कारण नाभिक में जो स्थितिज ऊर्जा निहित रहती है उसे नाभिकीय ऊर्जा कहते है |
यांत्रिक ऊर्जा -(mechanical energy)
किसी वस्तु कि गतिज ऊर्जा तथा उसमे उपस्थित स्थितिज ऊर्जा के योग को यांत्रिक ऊर्जा कहते है
ऊर्जा संरक्षण का सिद्धांत -(principle of conservation)
ऊर्जा संरक्षण के अनुसार "ऊर्जा न तो नष्ट कि जा सकती है और न ही ऊत्पन्न किया जा सकता है ,इसका एक रूप से दुसरे रूप में स्थानान्तरण ही संभव है |" दुसरे शब्दों में ,जब ऊर्जा का एक रूप विलुप्त होता है ,तो वही ऊर्जा उतने ही परिमाण में किसी अन्य रूप में प्रकट हो जाती है |अतः यह कहा जा सकता है कि"ब्रह्माण्ड कि समस्त ऊर्जा संरक्षित रहती है "|
ऊर्जा का मूल श्रोत :सूर्य
सभी प्रकार कि ऊर्जाओ का मूल श्रोत सूर्य ही है |सूर्य में ऊर्जा कि उत्पत्ति द्रब्यमान -ऊर्जा के रूपांतरण से होती है |सूर्य में हाइड्रोजन का विशाल भंडार है, सूर्य में ऊर्जा रूपांतरण कि क्रिया में 4 -4 हाइड्रोजन नाभिक परष्पर संयोग करके एक- एक हीलियम नाभिक बनाते रहते है इस क्रिया में पदार्थ का कुछ द्रव्यमान ,ऊष्मा ,प्रकाश तथा अन्य रूपों में रूपांतरित हो जाती है |यही ऊर्जा सूर्य से प्रसारित होती है |द्रब्यमान से ऊर्जा में रूपांतरण कि इस प्रक्रिया को नाभिकीय संलयन (nuclear fusion)कहते है |
अतः सौर ऊर्जा का मूल श्रोत नाभिकीय संलयन है |
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